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उत्तमार्थ-प्रतिक्रमण-समाधिमरण लेते समय जीवन भर हुए दोषो का स्मरण करके गुरु के सम्मुख आलोचना पूर्वक जो प्रतिक्रमण किया जाता है वह उत्तमार्थ-प्रतिक्रमण कहलाता है। उत्तर-कुरु-यह विदेह क्षेत्र मे स्थित शाश्वत उत्तम-भोग भूमि है। इसके उत्तर दिशा मे नील पर्वत, दक्षिण मे सुमेरु, पूर्व मे माल्यवान और पश्चिम मे गन्धमादन गजदत पर्वत स्थित है। उत्तराध्ययन-जिसमे अनेक प्रकार के उत्तरो का वर्णन हे जैसे-चार प्रकार के उपसर्ग कैसे सहन करना चाहिए? बाईस प्रकार के परीषह सहन करने की विधि क्या है? इत्यादि प्रश्नो के उत्तर का वर्णन किया गया है वह उत्तराध्ययन है। उत्पाद-द्रव्य का अपनी पूर्व अवस्था को छोडकर नवीन अवस्था को प्राप्त करना उत्पाद कहलाता है। उत्पाद-पूर्व-जीव, पुद्गल आदि का जहा जव जैसा उत्पाद होता हे उस सवका वर्णन जिसमे हो वह उत्पाद-पूर्व नाम का पहला पूर्व है। उत्सर्ग-मार्ग-देखिए अपवाद-मार्ग। उत्सर्पिणी-जिस काल मे जीवो की आयु वल ओर ऊचाई आदि का उत्तरोत्तर विकास होता है, उसे उत्सर्पिणी काल कहते है। इसके दुषमा-दुषमा, दुषमा, दुषमा-सुषमा, सुषमा-दुषमा, सुषमा ओर सुषमा-सुषमा ऐसे छह भेद है। उदवर-फल-ऊमर, कठूमर, पाकर, वड, पीपल आदि वृक्षो के फल, उदवर-फल कहलाते है। ये त्रस जीवो के उत्पत्ति स्थान हे इसलिए
50 / जेनदर्शन पारिभाषिक कोश