________________
स्वच्छन्द - देखिए मृगचारी ।
स्वदार-सन्तोषव्रत- अपनी विवाहित स्त्री में ही सतुष्ट रहना और शेष स्त्रियो के प्रति माता, वहिन ओर पुत्रीवत् निर्मल भाव रखना स्वदार सतोषव्रत कहलाता है। इसे ब्रह्मचर्याणुव्रत भी कहते है ।
स्वप्न- निमित्त - स्वप्न के माध्यम से शुभाशुभ को जान लेना स्वप्न-निमित्त - ज्ञान कहलाता है।
स्वभाव-वस्तु का असाधारण और शाश्वत धर्म ही उसका स्वभाव कहलाता है । जैसे- जीव का स्वभाव चेतना या जानना - देखना है ।
स्वभाव - पर्याय - 'पर' निमित्त के बिना जो पर्याय होती है वह स्वभाव पर्याय कहलाती है। जैसे- जीव की सिद्ध पर्याय स्वभाव पर्याय है।
स्वयभू- जो जीव परोपदेश के बिना स्वय ही मोक्षमार्ग को प्राप्त कर लेते हे उन्हे स्वयंभू या स्वयबुद्ध कहते है ।
स्वयभूरमण - मध्यलोक के अंतिम द्वीप और अतिम समुद्र का नाम स्वयभूरमण है । स्वयभूरमण समुद्र मे सज्ञी पचेन्द्रिय जलचर जीव पाए जाते हे ।
स्वर-निमित्त-मनुष्य व तिर्यचो के विचित्र शब्दो को सुनकर शुभाशुभ को जान लेना स्वर-निमित्त - ज्ञान कहलाता है ।
स्वरूपाचरण - चारित्र- समस्त रागद्वेष से रहित अपने आत्मस्वरूप मे लीनता रूप चारित्र को स्वरूपाचरण चारित्र कहते है । यह निर्विकल्प समाधि का अविनाभावी हे |
जैनदर्शन पारिभाषिक कोश / 267