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सविपाक - निर्जरा-यथाकाल अर्थात् क्रम से परिपाक काल आने पर शुभाशुभ कर्म की जो फल देकर निवृत्ति होती है वह सविपाक - निर्जरा
है।
संकल्प - स्त्री, पुत्र, सम्पत्ति आदि चेतन-अचेतन पदार्थों मे 'ये मेरे हैं' ऐसी कल्पना करना सकल्प कहलाता है ।
संकल्पी - हिंसा - मै इस जीव को मारू' - इस प्रकार के विचार से जो हिसा होती है उसे संकल्पी - हिसा कहते है |
संक्रमण - जो कर्म-प्रकृति पहले जीव के बधी थी उसका अन्य प्रकृति रूप परिणमन हो जाना सक्रमण कहलाता है। जीव के परिणामो के द्वारा पहले बाधी हुई कर्म प्रकृति बदलकर अन्य प्रकृति रूप हो जाती है, यही सक्रमण कहलाता है । सक्रमण पाच प्रकार से होता है - उद्वेलन - सक्रमण, विध्यात सक्रमण, अध प्रवृत्त सक्रमण, गुणसक्रमण और सर्वसक्रमण |
संक्लेश- असातावेदनीय कर्म के वध योग्य परिणाम को सक्लेश कहते है । या तीव्र कषाय रूप परिणाम का नाम सक्लेश है।
संक्षेप - सम्यग्दर्शन - जिनागम मे कहे गये जीवादि पदार्थो को सक्षेप से सुनकर या जानकर जो सम्यग्दर्शन होता है उसे सक्षेप - सम्यग्दर्शन कहते है ।
संख्या - सत् प्ररूपणा मे जो पदार्थों का अस्तित्व कहा गया है उनके प्रमाण का वर्णन करने वाली सख्या हे । सख्या से आशय भेदो की गणना से है ।
जैनदर्शन पारिभाषिक कोश / 245