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अनुक्त-विना कहे अभिप्राय मात्र से वस्तु को जान लेना अनुक्त - अवग्रह है। जैसे - वीणा के तार सभालते समय ही जान लेना कि 'इसके द्वारा यह राग वजाया जायेगा' |
अनुजीवी-गुण-द्रव्य मे विद्यमान भाव रूप गुणो को अनुजीवी गुण कहते है, जैसे- जीव मे विद्यमान ज्ञान, दर्शन, चेतना आदि गुण और पुद्गल के स्पर्श, रस, रूप आदि गुण ।
अनुत्तरोपपादिक-दशाङ्ग-प्रत्येक तीर्थकर के काल मे भीषण उपसर्गों को सहन करके वैमानिक देव के रूप मे अनुत्तर विमानो मे उत्पन्न होने वाले दश दश महामुनियो के चरित्र का जिस शास्त्र मे वर्णन किया जाता है उसे अनुत्तरोपपादिक दशाङ्ग कहते है ।
अनुपचरित-असद्भूत व्यवहार - सश्लेष सहित वस्तुओ के सबध को बताने वाला अनुपचरित सद्भूत व्यवहार नय है । यह वस्तु को जानने का एक ऐसा दृष्टिकोण है जिसमे पृथक वस्तुओं के बीच होने वाले सश्लेष सबध को दृष्टि मे रखकर कथन किया जाता है जैसे 'यह जीव का शरीर है' या 'यह मेरा शरीर है' ।
अनुपचरित - सद्भूत व्यवहार - शुद्ध गुण व शुद्ध गुणी मे भेद का कथन करना अनुपचरित सद्भूत व्यवहार नय है । यह वस्तु को जानने का ऐसा दृष्टिकोण है जिसमे एक ही शुद्ध द्रव्य के आश्रित रहने वाले गुणो को उसी द्रव्य अर्थात् गुणी से भेद करके कथन किया जाता है जैसे 'केवल ज्ञान आदि जीव के गुण है' - ऐसा कहना ।
अनुपवास- जल को छोडकर शेष सभी प्रकार के आहार का त्याग करना अनुपवास हे या गृह सबधी कार्य करते हुए जो उपवास किया 14 / जैनदर्शन पारिभाषिक कोश