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________________ पञ्च-परमेष्ठी-जो परम-पद में स्थित है वे परमेष्ठी कहलाते हैं। अर्हन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु-ये पञ्च परमेष्ठी है। पञ्चम-काल-देखिए दुषमा। पञ्चमेरु-देखिए सुमेरु। पञ्चाङ्ग नमस्कार-जो शरीर के पांच अङ्गो अर्थात् दोनो हाथ, दोनो घुटने और सिर को भूमि से लगाकर नमस्कार किया जाता है उसे पञ्चाङ्ग-नमस्कार कहते है। पञ्चाचार-अपनी शक्ति के अनुसार सम्यग्दर्शन आदि की निर्मलता के लिए जो प्रयल किया जाता है उसे आचार कहते है। दर्शनाचार, ज्ञानाचार, चारित्राचार, तपाचार ओर वीर्याचार-यही पञ्चाचार है। पञ्चेन्द्रिय-जिनके स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र ये पाचो इन्द्रिया होती है वे पञ्चेन्द्रिय जीव कहलाते है। देव, नारकी, मनुष्य तथा जलचर, थलचर, नभचर आदि कुछ तिर्यच जीव पञ्चेन्द्रिय होते पण्डित-पण्डित-मरण-केवली भगवान के निर्वाण को पण्डितपण्डित-मरण कहते है। पण्डित-मरण-महाव्रती साधु का सल्लेखनापूर्वक होने वाला मरण, पण्डित-मरण कहलाता है। यह तीन प्रकार का है-भक्त-प्रत्याख्यान, इंगिनीमरण और प्रायोपगमन। जैनदर्शन पारिभाषिक कोश / 147
SR No.010043
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherKshamasagar
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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