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धारणा-1 जाने हुए पदार्थ को कालान्तर मे नहीं भूलना धारणा नाम का मतिज्ञान हे। 2 पच-नमस्कार मत्र व जिनप्रतिमा के आलम्बन से मन को एकाग्र करना धारणा नाम का ध्यान है। ध्यान के लिए पाच प्रकार की धारणाए प्रसिद्ध है। (देखिए पिडस्थ-ध्यान) धूमदोष-यदि साधु निदा या ग्लानि करते हुए आहार ग्रहण करे तो यह धूम-दोष है। ध्याता-शुभ ध्यान करने वाले साधक को ध्याता कहते है। ध्यान-चित्त की एकाग्रता का नाम ध्यान है। यह चार प्रकार का हे-आर्तध्यान,रोद्रध्यान,धर्मध्यान और शुक्लध्यान । आर्तध्यान और रोद्रध्यान ससार को बढाने वाले होने से अशुभ है। धर्मध्यान व शुक्लध्यान मोक्ष प्राप्ति मे सहायक होने से शुभध्यान है। ध्येय-ध्यान के आलम्बन को ध्येय कहते हे। ध्येय चेतन-अचेतन दोनो प्रकार के हो सकते हे, जो जीव के शुभ-अशुभ परिणाम मे निमित्त वनते है। ध्रुव-अवग्रह-जो यथार्थ ग्रहण निरतर होता हे वह ध्रुव अवग्रह है। आशय यह है कि जेसा प्रथम समय मे शब्द आदि का ज्ञान हुआ था, आगे भी वेसा ही होता रहता है, कम या ज्यादा नहीं होता यह ध्रुव-अवग्रह है। प्रौव्य-द्रव्य को स्वभाव रूप स्थिरता का नाम ध्राव्य हे।
जेनदर्शन पारिभाषिक काश / 181