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________________ दोक्य जैनपदसंग्रह । १९ मोड दौलके, हर. जो जगभरमावतु हैं ॥ चन्द्रानन जिन ॥५॥ जय जिन वासुपूज्य शिव-रमनी-रमन मैदन दनुदारन हैं। वालकाल संयम सम्हाल रिपु, मोईज्यान पलमारन हैं ॥ जय जिन० ॥१॥ जाके पंचकल्यान भये चंपापुरमें सुखकारन हैं । वासवछंद अमंद मोद घर किये भवोदधि तारन हैं ॥ जय जिन० ॥२॥ जाके बैन सुधा त्रिभुवन जन, को भ्रमरोग विदारन है। जा गुनर्चितत अमल अनल मृत, जनम-जरा-वन-जारन हैं ॥ जय० ॥ ३॥ जाकी अरुन शातछवि-रविमा, दिवस प्रवोव प्रसारन हैं । जाके चरन शरन सुरत वांछित शिवफल विस्तारन हैं ।। जयजिन ॥ ४॥ जाको शासन सेवत मुनि जे, चारज्ञानके धारन हैं। इन्द्रफर्णीद्र-मुकुटपणि-दुतिजल, जापद कलिल पखारन हैं जय० ॥ ५ ॥ जाकी सेर अछेवरपाकर, चहुंगतिविपति उधारन है । जा अनुभवपनसार सुमाकुल-तापकलाप निवारन हैं ॥ जय० ॥ ६ ॥ द्वादशों निनचन्द्र जास १ कामदेवपी राक्षसको मारनेवाले। २ मोहरूपी सांपइन्दो. के समुह | Nis ५ पाप। अक्षयसनी ( मोक्ष) की करने. बाली । ७ अनुमनरूपी मलयागर चन्दन ! ८ माइत्तताके तापका मन्द ।
SR No.010037
Book TitleDaulat Jain Pada Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages83
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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