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१ दश-वैकालिक-सूत्र ।
चतुर्थ अध्ययन । हे गुरो ! करिया थाकि यदि उक्त पाप। करितेछि प्रतिक्रम करि मनस्ताप । पृन्वोक्त दोषते युक्त आत्माके एखन । निन्दि गर्हि पापहते करि विमोचन ॥४ महाव्रत युक्त भिक्षु भिक्षुकी वा भवे । सप्तदश - संयमेते युक्त स भावे ।। द्वादश - विधाने यारा तपस्यानिरत । प्रतिहत प्रत्याख्यात पापकर्म शत ॥ दिससेर आगमने किम्बा रात्रिकाले । एकाकी जाग्रत सुप्त सभागत हले। करिवे ना हिंसा कभु वनस्पतिकाये। वीओर उपरे, वीजस्थित द्रव्य चये ॥ अंकुरस्थ द्रव्य किम्चा अंकुर कथित । क्षुद्रवृक्ष कोन द्रव्य उहार आश्रित ।। दूर्वादि हरित किम्बा द्रव्य तदाश्रित । छिन्न वृक्ष फल-फुल शाखा समन्वित॥ सजीव उहारा किम्वा द्रव्य तदाश्रित । अण्डादि काष्ठादि किम्बा कीटादिसंयुत ।। इहादेर उपरेते करिये - सुजन । गमन दाँडान वसा स था वजन ।। चालावेना स्थापिवेना दिवेना सम्मति । मानिया चलिवे साधु धरम पद्धति ।।