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दश - कालिक-सूत्र |
चतुर्थ अध्ययन |
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मैथुनजनितदोषे आत्मा के एखन । निन्दि गर्हि पापहते करि विमोचन || एसेहि चतुर्थ निते गुरो ! महाव्रत । उक्त दोष आमाहते हयेछे विगत ॥४ परिग्रहत्यागरूप आगम कथित | पञ्चम स्थानीय गुरो ! एइ महानत ॥ परिग्रह हय गुरो ! अति पापाचार | छाड़ितेछि आमि एवे सकलप्रकार ॥ परिग्रह अल्प बहु अणु स्थूल हय । चित्त अचित्त किम्बा ये कोन समय ॥ लइवेना उहा निजे जीवने कखन । करावेना नर द्वारा उहार ग्रहण ॥ अनुमति नाहि दिवे परिग्राहि - जने । परिग्रह महापाप आगमविधाने ॥ त्रिविधकरणयांगे थाकि आजीवन । कायमनोवाक्ये कभु आमि अभाजन || करिणा वा कराइणा देइना सम्मति । परिग्रह येइ हेतु करे अधोगति ॥ हे गुरो ! करिया था कि यदि उक्त पाप । करितेछि प्रतिक्रम करि मनस्ताप || परिग्रह - दोषयुक्त - आत्मारे एखन । निन्दि गर्हि पापहते करि विमोचन ॥
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