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दश- वैकालिक सूत्र |
चतुर्थ अध्ययन |
माटी जल निर्वापित निर्जीव अनल | तद्भिन्न अनल हय सजीव प्रवल ॥ अनेक जोवेर वास अनलभितरे । भिन्न भिन्न थाके आत्मा जीवेर शरीरे ॥ जीव शून्य वायु दृष्ट हइवे कखन | सजीव लक्षित हवे कभु समीरण । अनेक जीवेर बास वायुर भितरे । रहेछे अनेक आत्मा जीवेर शरीरे ॥ वनस्पति जीवहीन वह्नि आदि योगे । तद्भिन्न उहारा हय सजीव भूभागे ॥ अनेक जोवेर बास उहार भितरे । अनेक रहेछे आत्मा जीवेर शरीरे ॥ वनस्पति आछे विश्वे अनेकप्रकार | बलिव उहार भेद करिया विचार ॥ अग्रबीज मूलवीज केह पर्णबीज । बीजरुहा संमूच्छिमा केह स्कंदवीज || तृणलता सकलेइ वनस्पति - काय । सवीज सचित्त वलि प्रख्यात धराय ॥ बहुवीज भिन्नसत्त्वा इहारा सकल | अनल प्रभृति द्वारा निर्जीव केवल ||२ बहुविध स प्राणी आछे एजगते । केहजन्मे अण्ड हते केह पोत हते ॥
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