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दशकालिक सूत्र |
तृतीय अध्ययन |
साधुगणपरित्याज्य प्रचुर त्रिषय | त्व जिते करिये पण छाड़िया संशय ॥ घृद गुड़ आदि द्रव्य करिया सञ्चय । राखिवेना निशाकाले साधु महोदय ॥ ना करिवे गृहस्थेर पात्रेते आहार । दोषावह उहा बुझि यति शुद्धाचार ॥ राजभोग्य प्रियखाद्य कवन ग्रहण | करिवेना भ्रमक्रमे विज्ञ साधु जन ॥ इच्छामे कृतखाद्य साधु ना लइवे । सुखार्थी देह ना कभु मर्छन करिवे ॥ प्रक्षालन ना करिवे दन्त साधुजन । अंगुलिर सहयोगे भ्रमेओ कखन ॥ ना करिवे कोन प्रश्न गृहस्थ नेहारि । "कि प्रकार आछ तुमि " मुखे व्यक्त करि ॥ ना हेरिवे मूर्ति निज आदर्श कखन । मुक्ति हेतु करि साधु सन्न्यासग्रहण ॥३ जुया खेलि नर सदा लभे परितोष । बलि अधुना ताइ अष्टापद दोप || गृहस्थेर शिक्षादान कभु अष्टापदे । ना करित्रे मुक्त साधु पड़िया प्रसादे ॥ पाशार साहाय्ये कभु द्यूतक्रिया करि । ना लइवे अर्थ साधु नीति परिहरि ॥