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मङ्गलाचरण ।
चिदानन्दमय प्रभु व्याप्त चराचर। शुद्ध-बुद्ध-यतिलब्ध ज्ञानेर गोचर ॥ सर्वधीवृत्तिर साक्षी नित्य निर्विकार । अजर अमर आत्मा नमि कोटिवार ।। जैनधर्म-प्रवर्शक अहिंस - साधक, यांहादेरं कृपावले प्रवुद्ध श्रावक, अपभादि पूज्य त्रयोविंशति-संख्यक, नमि आमि भक्तिभरे विश्वेर रक्षक। जीव मुक्ति हेतु यिनि. कृच्छुव्रतधारी! साधु श्रेष्ठ महावीरे नमस्कार करि।। शान्त शुद्ध जितेन्द्रिय प्रवीण आगमे। सभक्ति साञ्जलि नमि श्रीतुलसी रामे ॥