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________________ १६९ दश-वैकालिक सूत्र | प्रथम चूलिका । संयत विहीन जन प्रवज्या रहित । दारुण नरक कष्ट पाय अविरत ||१० साधुर आचारे रत महर्षि सकल | देव तुल्य श्रेष्ट सुख भुख अविरल ॥ साधुर आचार भ्रष्ट लोक नराधम । नरक सदृश दुःख पाय सुविपम ॥ , बुकिया पूर्वोक्त फल सदसद्विवेकी । सदाचारे रत हन मोक्षमार्गे थाकि ॥११ यज्ञ शेपे भष्मानल अल्प तेजोयुत । उद्धत - दशन सर्प घोर विप मत ।। धर्मभ्रष्ट दोपकारी तपोलक्ष्मी हीन । नर के अवज्ञा करे स्वभाव मलिन ॥१२ ये जन धरमभ्रष्ट, अधमें चालक । अखण्डनीय चारित्र - खण्डन कारक ॥ इहलोके अधर्मात्मा तारे सवे कय । पराक्रमाभावे तार कीर्त्ति नाश हय ॥ पतित बलिया तारे सामान्य मानव । दुर्नाम करिते थाके अति असम्भव ॥ विशिष्ट लोकेर कथा कि वलिव आर । लाञ्छना पाइते हय अत्यन्त ताहार ||१३ कृप्यादि स्वरूप अति सन्तोष विहीन । संयमविहीन का मन यार लीन ॥
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
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