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________________ १५८ 'दश-वैकालिक-सूत्रं ॥ दशम अध्ययन । वेतालादि कृत शब्द अट्टहास आर । शुनियाओ सुखं खे समभाव यार ।। तिनिइ प्रकृतसाधु सर्व्वगुणाधार । भाव साधु वलि तिनि पूजित सवार ॥११ श्मशाने प्रतिमा किम्बा दृश्य भयङ्कर । नेहारि ये साधु हन निर्भय अन्तर || साधुवर यिनि हन वहु गुण युत । दिन रात हितकर तपस्याय रत ॥ ना करेन अभिलाप शरीर धारणे । वर्त्तमान ओ भविष्यत् सुखेर कारणे ॥ ईदृश संयत मुनि ममता - विहीन । भाव साधुरुपे ख्यातं हन चिरदिन ||१२ शरीरे ममता करि शरीरेर शोभा । ...यन ये साधुवर अति मनोलोभा ॥ संत महंत किम्बा कर्त्तित भक्षित । हइया सहनशील पृथिवीर मत || करेना कामना येवा साधक प्रवीण । कुतूहल देखाशुना - सम्बन्ध विहीन ॥ भाव साधु वलि तिनि भवे ख्यांत हन । ताहाकेइ लोके करें संभक्ति पूजन ॥१३ साधु धरा था अति अनुरागे । क्लेश राशि जय करे शरीर प्रयोगे ॥ F
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
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