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दश-वैकालिक-सूत्र ।
नवम अध्ययन ।
चतुर्थ उद्देश। करिवेना उहा इह परलोक तरे। कीर्ति वर्णादि ते सदा ख्याति पाइवारे ।। मूल गुणोत्तरगुण-मय ये आचार। छाडिवे उहारे साधु करिया विचार ॥ जिनं वचनेते रत हइवे साधक । वलिवेना पुनः कथा असूया सूचक । प्रीति पूर्ण थाकिवेक सुत्रादिर योगे। मोक्षार्थी हइवे सदा आचार प्रयोगे॥ करिवे आसन्न मोक्ष, इन्द्रिय दमिवे। . आचार समाधि साधु अवश्य पालिवे ॥५ जानिया समाधि चारि पूर्वोक्त रीतिते। पालन करेन यिनि पापमुक्त हते ॥ . कायमनोवाक्ये संदा विशुद्धहृदय ।
समाधिते युक्त हन अति पुण्यमय ।। • संयम - वलेते तिनि करेन स्वहित ।
अपूर्व आत्मज सुख लभेन सतत ॥६ समाधिते सिद्धिलाभ करि साधुजन । जनम मरण हते चिर मुक्त हन ।। नारकादि चतुर्विध संसार कारण । वर्ण संस्थानादि सव करेन वर्जन । '