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दश-वैकालिक सूत्र |
नवम अध्ययन |
चतुर्थ उद्देश ।
आदिष्ट शुश्रूषा हय प्रथम स्थानीय । सम्प्रतिपादन उहा कथित द्वितीय ॥ श्रुताराधना आर आत्मोत्कर्ष सम्पादन । तृतीय चतुर्थ वलि कहेन सज्जन ॥ निम्नोद्धृत श्लोके उहा हय उल्लिखित । विनय समाधि फल उहाते कथित ॥ विनय समाधि द्वारा मोक्षार्थी भिक्षुक । हयेन गुरुर आज्ञा शुनिते इच्छुक ॥ उहार मम्र्म्मार्थ साधु बुझिया तखन । श्रुतलाभे यथारीति करि आराधन ॥ विनीत साधु आमि एइरूप ज्ञान । ना करिया साधु छोड़े निज अभिमान ॥२ श्रुत समाधिर भेद चारिटि प्रकार । निम्ने उहा यथारीति हइवे प्रचार ॥ श्रुतवाक्य अध्ययन, एकाग्र चिन्तन । स्वात्मार स्थापन धम्मै परकेओ तेमन ॥ निम्नोद्धृत श्लोके उहा विवृत्त हड़वे । साधुरा उहार तत्त्व वुझिते पारिवे ॥ अध्ययने तत्परेर ज्ञानोदय हय । ने हय सदा स्थित्तरे उदय ॥