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दश-वैकालिक-सूत्र।
नवम अध्ययन। तृतीय उद्देश।
राखेन सन्तुष्ट आत्मा कल्पित आहारे । सन्तोष-प्रधान तिनि पूज्य चराचरे ॥५ मानव "पाइव अर्थ" ए रूप आशाय । लौहमय कण्टको सहे ए धराय ॥ किन्तु तीक्ष्ण वाणीरूप आघात भीषण | पारे ना सहिते भवे मानव कखन ॥ निराश ये साधु सहे कर्कश वचन । धराधामे करे तारे सकले पूजन।६ मुहूर्त कालेर तरे हय दुःखमय । कण्टक नरेर देहे कभु लौहमय ॥ अनायासे किन्तु उहा करि उत्तोलन । दुःखदूर करि हय सुखर भाजन ।। विन्तु वाणीरूप कांटा विधिले हृदये। उठाइते हय उहा बहु कष्ट दिये ।। इहलोके परलोके वचन कण्टक । मानवेर अति-वैरि - भावेर वर्द्धक ।। कुगति कारक उहा अति दुर्निवार। भयङ्कर किवा आले मतन उहार ||७. कर्कश वचनांघात यदा कर्णे लागे। उपजे अतीव दुःख निज मने-भागें।