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________________ दश-वैकालिक सूत्र । १२९ अष्टम अध्ययन । सेइ श्रद्धा आर गुण गुरुर सम्मत । पालिवेन साधुवर अति शुद्ध चित ॥६१ अनशन आदि तपः संयम पालन । आगमेर पाठरूप स्वाध्याय करण ।।. पूर्वोक्त विधान साधु करिते पालन । सतत विशुद्ध चित्ते-करेन यतन ।। इन्द्रिय कपाय आदि चतुरङ्ग सेना। अवरोधि देय तारे कतइ यातना ।। तपस्याय अरि जिति वीरेर मतन । साधक करेन सदा स्वपर-रक्षण ॥६ अग्नितापे रजतेर मल दूर हले। विशुद्ध रजत पाय मानव सकले ।। सेइ रूप योगिवर स्वाध्याय निरत । शान्तिप्रिय धर्मावली अतिशुद्धचित ।। तपस्या - निरत हये पूर्व कर्म मल । दूर करि शुद्ध हन वन्धन प्रवल.॥६३ कृष्णमेघ अन्तर्हित ह'ले ये प्रकार। हिमांशु विराजे लभि सुन्दर आकार ।। सेइरूप पूरवर गुणेते संयुत । परीपह आदि दुःख सहने निरत ॥ श्रुत ज्ञानी जितेन्द्रिय ममता-विहीन । दरिद्र साधक-वर आगम प्रवीण ||
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
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