________________
दश-वैकालिक सूत्र |
अष्टम अध्ययन |
करिवेना व्यर्थ श्रेष्ठ आचार्य वचन । विनीत साधक कभु भ्रमेओ कखन || गुरुवाय यथारीति करिया श्रवणं । करिवे वचनकर्मे उहार पालन ||३३ जीवन अनित्य भवे, ज्ञानादि विपय । साधुर सिद्धिर पथ, करिवे निश्चय ॥ शतवर्ष आयु साधु केवल पाइवे । बुझि इहा भोगहते निवृत्त हइवे ||३४ मानसिक वल और दैहिक दृढ़ता। क्षेत्रकाल विचारिया श्रद्धा नीरोगता || आत्माके संयम मार्गे नियुक्त करिवे । साधुर कामना सिद्धि अवश्य घटिवे ||३५ यत दिन व्यापि जरा ना करे पीड़ित । यत कालावधि व्याधि नाहय वर्द्धित || क्षीण शक्ति नाहि हय इन्द्रिय समूह | धर्म्म आचरिव साधु त्यति मायामोह ||३६ क्रोध मान माया लोभ एइ दोप चारि । सर्व्वदाइ मानवर अंति पांपकारी ॥ समाहित आत्महिते पापेर वर्धक । त्यजिवे चारिटि दोप संयत साधक ॥३७ क्रोध प्रीति नाश करे, विनयघ्न मान । 'मित्र हन्त्री माया, लोभ सर्व्व विनाशन ॥ ३८
१२३