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दश-वैकालिक-सूत्र।
षष्ठ अध्ययन।
तादृश भीपण कर्म-हेतुभूत हय । शरीरर शोभावृद्धि सकल समय । शारीरिक शोभा द्वारा यतिर अशेप । चित्र मालिन्य दोप हय समावेश ।। स्वकीय वा अपरेर रक्षक सुजन विभूपासेवाय, कभु नाहि रत हन ।। तीर्थकर पूर्वरूप धारणा करिया। दियाछन उपदेश प्रसन्न हइया ॥६७ संयम ओ सरलता-गुण विभूपित । . यथार्थ-तत्त्वते ज्ञानी साधक पूजित ।। अशान्त-आत्माके शान्त पवित्र करिया । निरमल भावनाय आसक्त थाकिया । पुराकृत पापचय करेन विनाश । नव पापा ने थाके नाहि अमिलाप ॥६८ प्रवल, मानव रिपु, क्रोध, दुर्निदार । वशीकृत, सुविजित हयेछे याहार ।। वन्ध हेतु, मोहकर-ममता असार । तेयागिया सदा यारा करेन विहार ।। धनधान्य आदि कत आछे नानाकारे। परिग्रह आभ्यन्तर वाह्य चराचरे।। विरत सतत यारा परिग्रह होते। आत्मार वन्धनमुक्त सतत करिते।