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: -मालिक-सूत्र ।
अथ षष्ठ अध्ययन। आहार करिले पात्रे गृहीर कखन । परे गृही प्रक्षालने नाशे जीवगण.।। पुरः कर्म आहारेर प्रारम्भे सतत । पात्र.प्रक्षालने गृही नाशे जीव शत ।। एहेन दूषित कर्म घृणित . सवार। गृहि पाने साधुलोक करेना आहार ।।५३ आसन, पर्य्यक कुर्सी, गृहरथ-कल्पित । सिंहासन किम्वा मञ्च अति सुशोभित ॥ उल्लिखित द्रव्योपरि साधुरा कखनं । वसिवेना शुईवेना करिवे वर्जन ॥५४ तीथकर वाणी यारा पालने तत्पर । निर्गन्थ संयमी सदा सज्जन प्रबर।। आसन्दी पालक गदी वेतेर आसने। कभु ना वसिवे तारा सुखेर कारणे ॥५५ आसन्दी पर्यकं आदि आसन प्रचय । प्रकाश-रहित हय, जीवेर आश्रय ॥ उत्पीड़न घटे सदा बसिले आसने । क्षद्र क्षुद्र जीवदेर भवे सर्वक्षणे॥ बुमि मुनि दोष हेतु सिद्ध तपोधन । आसन्दी पालक आदि करेन वजन ॥५६ गृहस्थेर गृहे यदि वसे शुद्धाचार। मिथ्यात्व-अर्जने तार हय अनाचार ॥५७