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________________ दश-र्वकालिक-सूत्र। अथ षष्ठ अध्ययन । योग्य क्षेत्र, योग्यकाले, आगम-विधाने। वस्त्रादि-सहित युक्त, हन सावधाने ।। जीविका-निवाह-कल्पे तत्पर हइया। परिग्रह लन साधु ममता सजिया ।। धम्म-कार्ये रत, साधु ज्ञाततत्त्वसार । करेना ममतावुद्धि देहेते ताहार ॥२२ अहो कि विस्मयकर, साधुर विधान । श्रवणे उल्लासे मग्न सवार पराण ॥ दोपरे अभाव, गुण-वृद्विहेतु, आर। चित्तस्थिरकारी तपः-कम्मर प्रचार।। करेछेन, तीथंकरगण एधराय । साधुदेर धर्म, भावि-शुभ कामनाय ।। अनुकूल वृत्ति हय संयम-रक्षण । द्रव्यभावे एकवार आहार्यग्रहण ।। नित्यतपःकर्म उहा वले साधुजन । इहाते संशय कारो हयना कखन ।।२३ त्रस ओ स्थावर प्राणी अति सूक्ष्म देह । रात्रिते भोजने व्यस्त घुरे अहरह ।। दिवाते साधक जीव देखिबारे पाय । सावधाने चले ताई, जीवेर रक्षाय ॥ ना हेरिया उहादेर रात्रिते भोजन । केमने करिवे साधु. करि विचरण ॥२४
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
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