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[६] श्रीमदभगवद्गीताओ अध्यात्मिक कर्म व्यतीत अन्यान्य कर्मफे वन्धनेर हेतु बलिया उल्लिखित हइयाछे। यथा :--
"यज्ञार्थात् कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मवन्धनः।
तदर्थं कर्म कौन्तेय ; मुक्तसङ्गः समाचर ॥ परमेश्वरेर आराधना व्यतीत अन्यान्य कर्मेर अनुष्ठान संसार वन्धनेर हेतु-भूत हय अतएव हे पाय ! तुमि निष्काम हइया भगवानेर प्रीतिर निमित्त विहितकमर अनुष्ठान कर। पूवोक्त श्लोके आध्यात्मिक कम व्यतीत अन्यान्य कर्मद्वारा जीव वद्ध हय इहाइ प्रमाणित हय । जैनसिद्धान्त दोपिकार प्रणेता पूज्यपाद आचार्य श्रीमत् तुलसी रामजी महाराज धर्मेर व्याख्या निम्न प्रकार करियाछन ।
____ "आत्मशुद्धिसाधनं धर्मः ।" आत्मशुद्धिर साधनइ धर्म। तत्पर धर्मके तिनि दुइभागे विभक्त करियाछन :
___" संवरो निर्जरा।" सम्बर संयम ओ निर्जरातपः एइ दुइटिके धर्म वलियाछेन । एमनकि क्षान्ति मुक्ति सरलता ब्रह्मचर्य प्रभृतिकेओ धर्माङ्ग वलिया निर्देश करियाछेन । अतएव जैनाचार्यगण आध्यात्मिक कम्मके कखनओ वन्धन हेतुभूत कर्म वलिया स्वीकार करेन नाइ इहा स्पष्टरुपे अनुमित हय ।
शास्त्रोक्त विधि पालन करिते हइले शास्त्रोक्त वाफ्यगुलिर वहिरावरण भेद करिया उहार गृहाथं हृदयङ्गम करिते चेष्टा करिते हय । वक्तार प्रकृत उद्देश्य कि ताहा प्रणिधान सहकारे बुझिया कर्तव्य स्थिर करिते हइवे । सेइजन्य शात्रकार वलियाछेन :