SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वस अब मंत्रीराजके सुभटोंने सामने आते सदीकके सुभटोको मारपीट कर भगादिया, और मिथ्याभिमानी सदीकको पकडकर मंत्रीदेवको सौंपा। ___ वस्तुपालने अपने योद्धाओंको आज्ञा दीकि-अन्यायी मनुप्यकी संपत्ति सर्पको दूधकी तरह स्वपर दोनोंको हानिकारक है, इसवास्ते इसकी कुल संपत्ति लेकर राज दरवारमे दाखल करो । उसके घरकी तलाशी लेने पर ५००० सोनेकी इंटें, १४०० घोडे, औरभी रत्न मणि माणिक वगैरह चीजें जो सार सार थीं सो राज्यके आधीन की गई और सदीकको इस शरतपर छोडागया कि तुमने आजसे किसी भी गरीबसे अन्याय नही करना, और राज्यका अपमान नही करना । __ शंखराजाको जीतकर मंत्रीराज जब खंभात आरहे थे तब . उनके आनेके पहले किसी देवीने सिंह पर सवार हो आकाशमे खडी रहकर नगरके लोगोंको कहा था कि-"वस्तुपालतेजपाल न्यायके पक्षपाती हैं । धर्मकी मूर्ति हैं, दीनोंके बन्धु और प्रौढप्रतापी हैं, इनकी अवगणना किसीने न करनी"। ___ यह देववाणी नागरिकलोगोंने सुनी, और यह बात फैलती फैलती सर्व भूमंडलमे फैलगई, जिस जिस राजा महाराजा सामन्तमंडलेश्वरने यह दैवी आज्ञाको परंपरासेभी सुना, उसने पुण्याधिक समझकर वस्तुपाल तेजपालको भेट उपहार भेजने शुरु किये । महात्मा भर्तृहरीने सत्य कहदिया है कि-"पुण्यानि पूर्वतपसा किल सश्चितानि, काले फलन्ति पुरुषस्य यथा हि वृक्षाः ॥" दिन प्रतिदिन लक्ष्मीसे-सत्तासे-तेजसे-प्रतापसे
SR No.010030
Book TitleAbu Jain Mandiro ke Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1922
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy