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________________ २३ उसके पकडने की आज्ञा करनी, ऐसा करनेसे केसरीके सामने जाके विना मोतके यह मराही समझो, बस “विनौषधं गतो व्याधिः ।" अगर भाग्यवशात् इस आपत्तिसेभी यह चचगया तो भीमसेनके समान वलिष्ट अपने मल्ल ( पहलवान ) के साथ इसकी कुस्ती करानी, पहलवान एक क्षणभ रमे इसकी हड्डियोंको चूर देगा । फरज करो इस आपत्तिसेभी यह कभी बचगया तो "इनके पूर्वजोंसे ५६ क्रोड टंक प्रमाण राज्यका लेना है इस बातका आरोप देकर इसको पकडके कैद करना और घर बार इसका "लूट लेना " । राजाधिराज गुर्जरपति अपने नित्य भक्त, एकान्त हितचिन्तक सच्चे सेवकवास्ते ऐसा अनुचित विचार करे यह उसके लिये सर्वथा अघटित था परन्तु किया क्या जाय " राजा मित्रं केन दृष्टं श्रुतं वा" "विनाशकाले विपरीतबुद्धिः" यह तो सदाका नियम है, अस्तु केसरी सिंह पिंजरे से निकाल दिया गया, राजाकी आज्ञासे एक हरिण या बकरेकी तरह पुण्याढ्य विमलने उसको पकड लिया । जिसमल्लको राजा बलिष्ठ समझता था उसे सभासमक्ष विमल ने ऐसा पछाडा कि वह मुशकिलसे जान लेके छूटा ! | ५६ क्रोड टंक लेनेका और उसके अभाव मे विमलको कैद करनेका हुकम होनेपर विमलकुमारने अपनी निर्दोषता और वीरताका परिचय कराते हुए राजाके सामने प्रतिज्ञा की कि,
SR No.010030
Book TitleAbu Jain Mandiro ke Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1922
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size5 MB
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