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________________ ११ ख्याल में लाकर वीरमतीका मन संकुचित रहा करता था, परन्तु " भाग्यानि पूर्वतपसा किल संचितानि काले फलन्ति पुरुषस्य यह वृक्षाः ।" || इच्छितसिद्धि ॥ विमलकुमारके मामा कुछ व्यापारभी करते थे, और कुछ खेती भी करते थे, विमलकुमार मामाके खेतों तर्फ जा रहाथा, रास्तेमें जाते जाते कहीं पोली जमीन देखकर उसने हाथकी लकडीकों वहां भोंक दिया, लकडी सीधी नीचे न जाकर वांकी होकर नीची चलीगई, विमलकुमारकों संशय पडा तो उसने ऊपरसे कुछ माटी हटा दी, कुछही नीचे खोदनेयर एक चरु धनसे पूर्ण मिल आया उसे लेकर कुमार घर आया उसने वोह चरु अपनी माताकों देकर उसकी प्राप्तिका वृत्तान्त कह सुनाया । वीरपत्नी वीरमती अतिशय प्रसन्न होकर बोली- वेटा ! तूं भाग्यवान है पुण्यवानोंके लिये सुनाजाता है कि 'पदे पदे निधानानि' मुझे निश्चय होता है कि इस शुभप्रसङ्गपर जो तुझे निधान मिला है, सो इस निमित्तसे अवश्य जाना जाता है कि, श्रीदेवीभी पूर्ण सौभाग्यवती और पुण्यवती हैं, और इस उत्तम कन्या घरमे आनेसें तुमारी कीर्त्तिमें बहुत कुछ वृद्धि होगी, बेटा ! जिनराजका धर्म आराधन करना । जिससे तेरे पुण्यकी औरभी पुष्टि होगी । पुष्कल धनके मिलने वीरमतीका मन उत्साहित हुआ, उसने भाई के साथ विचार करके विवाहकी कुल सामग्री तयार कराली, लग्नदिनके नजदीक आनेपर वीरमती अपने
SR No.010030
Book TitleAbu Jain Mandiro ke Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1922
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size5 MB
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