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________________ विद्वान् जैन साधुओंके चौमासेमी होते रहे हैं । वहां स्थिति करके उन उन महात्माओंने संसारके उपकारके लिये अनेक स्वसम्प्रदाय परसम्प्रदायके अन्योंकी रचना की है। आचार्य श्री "सोमप्रभसूरिजी"ने जिस समय मारवाड़ देशमें पानीकी दुर्लभता देखकर जैन साधुओंका मरदेशमें विचरना बंद कर दिया था उस समय जयसलमेर, जैनधर्मके (६४) मन्दिर थे । साधुओंके विहारके रुक जानेसे एक समय ऐसा आगया था कि, उन मन्दिरोंके दरवाजोंपर कांटे दिये जा रहेथे, परंतु कुछ क्षेत्र देवताकी सुकृपाके प्रभावसे सोमप्रभ. सूरिजीके समयका क्रूर ग्रह मानो हट गया और जगद्गुरु श्री विजयहीरसूरि"जीके दादागुरु श्री"आनन्दविमलसूरिजीने हिम्मत करके संकटोंको सहन कर मारवाड़ देशमें पादविहार करके जयसलमेरको पावन किया और मन्दिरोंके कांटोंको उठवाकर उपदेशद्वारा प्रभुप्रतिमाओंकी सेवा पूजा शुरु करवाई। सोमप्रभसूरिजीका सत्तासमय पावलियों में नीचे भूजब लिखा है-१३१० मे जन्म, १३२१ मे दीक्षा, १३३२ में आचार्यपद्वी ।। आनन्दविमलसूरिजीका समय १५४७ मे जन्म १५५२ मे दीक्षा, १५७० मे सूरिपद्वी। [प्रस्तुत अनुसन्धान ] - संघ आनन्दके साथ माघ महीनेमें बीकानेरसे रवाना हुआ. साथमें घोडे, ऊंट, हथियार बद्ध योद्धे संघकी शोभा बढा रहे थे। ___ सब बाल वृद्धकी अनुकूलताके लिये सिर्फ चार चार कोसके पडाव रखे गये थे । ठिकाने ठिकाने खधर्मीवत्सल होते चले जाते थे, गरीबोंको दान दिया जाता था । फलोधीमे पहुंचकर संघपतिने सकल संघकी भक्ति कीथी, एवं फलोधीके संघनेमी श्रीसघकी योग्य भक्ति कीथी। पोकरणाफलोधीमें जीर्णोद्धारकामी पुण्य आपने उपार्जन किया । साथके भाग्यवान अन्यश्रावकोंनेभी यथा शक्ति लाभ लिया। । जयसलमेर में पहुंचकर आपलोगोंने बड़े भक्तिभावसे यात्रा की, भण्डारमेंमी आपने अच्छी रकम दी । वहां आपने खधीवत्सलभी बड़े भावसे किया। इस प्रसिद्ध और श्लाघनीय कार्यमें आपने लग भग (१७०००) रुपया 'खर्च किया है । बीकानेरमें प्रायः कोचर सरदार ऐसे धार्मिक कार्योंमें धर्मवीरही
SR No.010030
Book TitleAbu Jain Mandiro ke Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1922
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size5 MB
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