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प्रथम पर्व
आदिनाथ-चरित्र महाबल की राज्यस्थिति।
कुमार की विषया सक्ति । महाबल कुमार भी, अपने बलवान विद्याधरों के साहाय्य से, इन्द्र के समान अखण्ड शासन से, पृथ्वी का राज्य करने लगा। जिस तरह हंस कमलिनी के खण्डों में क्रीड़ा करता है, उसी तरह वह, रमणियों से घिरा हुआ, सुन्दर बागीचों की पंक्तियों में सुख से क्रीडा करने लगा। उसके नगर में हमेशा होनेवाले संगीत की प्रतिध्वनि से वैताढ्य पर्वत की गुफायें, मानो संगीत का अनुवाद करती हों इस तरह, प्रतिध्वनित होने या गूंजने लगीं। अगलबग़ल में स्त्रियों से घिरा हुआ, वह मूर्त्तिमान शृङ्गार रसके जैसा दीखने लगा। स्वच्छन्दता से विषय-क्रीड़ा में आसक्त हुए महाबल राजा के लिए, विषुवत् के समान, रात और दिन समान होने लगे।
राजसभा। एक दिन, दूसरे मणिस्तम्भ हों ऐसे अनेक मंत्री और सामन्तों से अलंकृत, सभा में कुमार बैठा हुआ था; और उसको नमस्कार करके सारे सभासद भी अपने-अपने योग्य स्थानों पर बैठे हुए थे। वे राजकुमार के विषय में, एकाग्र नेत्रों से, मानो योग की लीला धारण करते हों, ऐसे दिखाई देते थे। स्वयं बुद्धि, संभिन्नमति, शतमति और महामति-ये चार मंत्री भी आकर वहाँ बैठे हुए थे। उनमें से स्वामी की भक्ति में अमृत-सिन्धु-तुल्य, बुद्धि