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प्रथम पर्व
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आदिनाथ चरित्र
की प्राप्ति होती है और वह सब लोगों पर अनुग्रह करता हुआ, लोकाग्र पर आरूढ़ होता और मोक्ष-पद लाभ करता 1 अभय-दान |
अभयदान - मन, वचन और काया से जीव-हिंसा न करना, न कराना और करने वाले का अनुओदन न करना 'अभय दान' है ।
जीव दो प्रकार के होते हैं: - (१) स्थावर, और (२) त्रस । स्थावर भी दो प्रकार के होते हैं:- १ ) पर्याप्त, और ( २ )
अपर्याप्त ।
पर्याप्त की कारण रूप छ: पर्याप्तियाँ होती हैं। उनके नाम ये हैं: -- ( १ ) आहार, ( २ ) शरीर, (३) इन्द्रिय, (४) श्वासो - च्छ्वास, (५) भाषा, और ( ६ ) मन । एकेन्द्रिय के चार, विकलेन्द्रिय के पाँच और पञ्चेन्द्रिय के छः पर्य्याप्तियाँ होती हैं। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति-ये एकेन्द्रिय स्थावर कहलाते हैं। इनमें से पहले चार के 'सूक्ष्म और बादर' दो भेद हैं। वनस्पति के 'प्रत्येक और साधारण' दो भेद हैं। उनमें से साधारण वनस्पति के भी 'सूक्ष्म और बादर' दो भेद हैं।
स जीव द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रियइस तरह चार प्रकार के होते हैं । पञ्चेन्द्रिय के 'संज्ञी और असंज्ञी' ये दो भेद हैं । जो मन और प्राण को प्रवृत्त करके शिक्षा, उपदेश और आलाप को समझते हैं, उनको “संज्ञी" कहते हैं । जो इनके विपरीत होते हैं, वे "असंज्ञी" कहलाते हैं ।
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