SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 495
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ..आदिनाथ-चकित्र प्रथम पर्व नन्दमें मग्न योगीकी तरह उन्होंने क्षण भर तक कुछ भी नहीं सुना । इसके बाद जैसे सरिता तटके सूखे हुए कीचड़ मेंसे हाथी बाहर निकलता है, वैसेही सुनन्दाके वे पुत्र भी पृथ्वीसे बाहर 1. निकले और लाक्षारसकी सी दृष्टिसे तर्जना करते हुए के समान १. वे अमर्षाग्रणी अपने भुजदण्ड और दण्डको देखने लगे । इसके बाद तक्षशिलाधिपति बाहुबली तक्षक नागकी तरह उस भयंकर दण्डको एक हाथ से घुमाने लगे । अतिवेगसे घुमाया हुआ उनका वह दण्ड राधा - वेधमें फिरते हुए चक्र की शोभाको धारण कर रहा था। कल्पान्त-कालके समुद्र के भँवर जालमें घूमते हुए मत्स्यावतारी कृष्णकी तरह भ्रमण करते हुए उस दण्डको देखकर देखनेवालोंकी आँखें चौंधिया जाती थीं । . सैन्यके सब लोग और देवताओंको उस समय शङ्का होने लगी, कि कहीं यह · बाहुबली के हाथ से छूटकर उड़ा, तो फिर सूर्यको कांसेके पात्र की तरह फोड़ डालेगा, चन्द्रमण्डलको भारड-पक्षीके अण्डेकी तरह चूर कर डालेगा, तारागणोंको आँवलेके फलकी तरह नीचे "गिरा देगा, वैमानिक देवोंके विमानोंको पक्षी के घोंसलोंकी तरह उड़ा देगा, पर्वत के शिखरोंको बिलोंकी तरह नष्ट-भ्रष्ट कर देगा, बड़े-बड़े वृक्षोंको नन्हे नन्हे कुञ्जके तृणोंकी तरह तोड़ देगा, और पृथ्वीको कच्ची मिट्टीके गोलेकी तरह भेद कर देगा । इसी शंकासे देखते हुए सब लोगोंके सामने ही उन्होंने वह दण्ड चक्रवर्तीके मस्तकपर चला दिया । उस बड़े भारी दण्डके आघातले चक्रवर्ती मुद्गलसे ठोंकी हुई कीलकी तरह कण्ठतक पृथ्वीमें " 7 ४७०
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy