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________________ आदिनाथ-चरिङ्ग . ४५४ प्रथम पर्व लिये हमारे इन्द्रकेसे पराक्रमी महाराजबाहुबलीतुमको रण-संग्राम करनेसे मना करते हैं। देवताओंके समान तुम भी तटस्थ होकर हस्तिमलुकी तरह अपने एकाङ्गमल्ल जैसे स्वामीका युद्ध करना देखो और वक्र बने हुए ग्रहों की तरह अपने रथों, घोड़ों और हाथियोंको पीछे लौटा ले जाओ। साँपको जैसे पिटारीके अन्दर बन्द कर लेते हैं, वैसेहो तुम अपने खड्गोंको म्यानमें डाल दो; केतुके सदृश भालेको कोषमें रख दो, हाथीकी सूंड़के समान अपने मुद्गरोंको नीचे डाल दो, ललाटकी भृकुटीकी तरह धनुषकी प्र. त्यश्चा उतार डालो, भण्डारमें जैसे द्रव्य डाल दिया जाता है, वैसेही अपने बाणोंको तरकसमें रख दो और मेघ जैसे बिजली का संवरण करता है, वैसेही अपने शल्यका संवरण कर लो।" प्रतिहारके वन-निर्घोष के समान इन वचनोंको सुन, चक्कर में आये हुए बाहुबलीके सैनिक बीच-बीचमें इस प्रकार विचार करने लगे,-"ओह, इन देवताओंने तो न जाने अकस्मात् कहाँसे आकर स्वामीसे प्रार्थना कर, हमारे युद्धोत्सवमें विघ्न डाल दिया। मालूम होता है, कि होनेवाले युद्धसे ये देवता बनियोंकी तरह डर गये अथवा इन्होंने भरत राजाके सेनिकोंसे रिश्वत ले ली है अथवा ये हमारे पूर्व जन्मके वैरी हैं। अरे ! हमारे सामने आये हुए इस रणोत्सवको तो देवने ठीक उसी तरह छीन लिया, जैसे भोजन करनेके लिये बैठे हुए मनुष्यके सामनेसे परोसी हुई थाली हटा ली जाये अथवा प्यार करनेको जाते हुए मनुष्यको गोदसे कोई उसका बच्चा छीन ले अथवा कुएँमें से बाहर निकल कर
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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