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आदिनाथ- चरित्र
प्रथम पर्व दण्डकी तरह बायें हाथमें धनुष ले लिया 1 इस प्रकार तैयार होनेवाले राजा बाहुबलीको स्वस्तिवाचक पुरुषोंने आपका कल्याण हो, ' ऐसा कहकर आशीर्वाद दिया । नाते-गोते की बड़ी-बूढ़ी 'स्त्रियाँ 'जीओ जागो' कहकर उन्हें असीसें देने लगीं। बड़े-बूढ़े और श्रेष्ठ पुरुष 'सानन्द रहो- सानन्द रहो' ऐसा कहने लगे और चारण-भाट चिरंजीवी हो, चिरंजीवी हो,' कहकर ऊँचे स्वरसे उनका मङ्गल मनाने लगे । तदनन्तर स्वर्गाधिपति जैसे मेरुपर आरूढ़ होते हैं, वैसेही सबके मुँहसे शुभ शब्द सुनते हुए महाभुज बाहुबली महावतका हाथ पकड़कर गजपतिके ऊपर आरूढ़ हुए ।
इधर पुण्य - बुद्धि. महाराज भरत भी शुभलक्ष्मीके कोषागार के समान अपने देवमन्दिर में पधारे। वहाँ पहुँचकर महामना महाराजने आदिनाथकी प्रतिमाको, दिग्विजय के समय लाये हुए पद्महद आदितीर्थोके जलसे स्नान कराया; जैसे उत्तम कारीगर मणिका मार्जन करता है, वैसेही देवदृष्य वस्त्रसे उस अप्रतिम प्रतिमाका मार्जन किया; अपने निर्मल यशसे उज्ज्वल बनायी हुई पृथ्वीके. समान हिमाचल कुमार आदि देवोंके दिये हुए गोशीर्ष - चन्दन से उस प्रतिमाका विलेपन किया: लक्ष्मीके सदन - स्वरूप कमलों के समान प्रफुल्ल कमलों से उन्होंने पूजामें नेत्रस्तम्भनको औषधिक समान प्रतिमाको आँगी रची। धूम्रवल्लीसे मानों कस्तूरीकी पत्र- रचना करते हों, ऐसा धूप उन्होंने प्रतिमाके पास जलाया । इसके बाद मानों सर्व कर्मरूपी समाधिका अग्निकुण्ड हो, ऐसी
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