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________________ आदिनाथ चरित्र ક प्रथम पवं 1 इधर बाहुबली स्नान कर, देवपूजाके लिये मन्दिर में गये । बड़े आदमी किसी कार्य संकट में पड़कर अपने चित्तको स्थिरताको नहीं खो देते । देवमन्दिर में जा, जन्माभिषेक के समय इन्द्रकी तरह उन्होंने ऋषभस्वामीकी प्रतिमाको सुगन्धित जलसे स्नान कराया। इसके बाद निःकषाय और परम श्रद्धा-युक्त होकर उन्होंने दिव्य- गन्ध-पूर्ण कषाय-वस्त्रले, मनमानी श्रद्धाके साथ उस प्रतिमांका मार्जन किया और इसके पश्चात् लालरंगके वस्त्रकी मानों रचना की हो, ऐसा यक्षकर्दमसे उस प्रतिमाका विलेपन किया । सुगन्धमें देववृक्ष के पुष्पोंकी मालाकीबहनसी विचित्र पुष्पों की माला से उन्होंने प्रतिमाका अर्चन किया। सोनेकी धूपदानीमें दिव्य धूप दिया। उसके धुएं से ऐसा मालूम पड़ने लगा, मानों नीले कमलों से पूजा की जा रही हो। इसके बाद मकरराशिमें आये हुए सूर्यके समान उत्तरासङ्ग कर, प्रकाशमान आरतीको प्रतापके समान ग्रहण कर, आरती उतार, अन्तमें हाथ जोड़कर आदि भगवान्‌को प्रणाम कर, उन्होंने भक्तिपूर्वक इस प्रकार स्तुति करनी आरम्भ की, 66 'हे सवज्ञ ! मैं अपनी जड़ता दूर कर आपकी स्तुति कर रहा हूँ; क्योंकि आपकी यह दुर्निवार भक्ति मुझे वाचाल कर रही है । हे आदि-तीर्थेश ! आपकी जय हो, आपके चरण-नखकी कान्तियाँ संसाररूपी शत्रुसे त्रास पाये हुए प्राणियोंको वज्रपंजरका काम देती है। हे देव ! आप के चरण-कमलोंके दर्शन करनके लिये दूर-दूर से जो लोग राजहंसके समान प्रतिदिन
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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