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आदिनाथ-चरित्र
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प्रथम पर्व चक्ररत्नकी तरह सेनापति भी आपके इस बाकी बचे हुए शत्रुको भी पराजित किये बिना सन्तुष्ट नहीं होंगे। इस लिये आप अब विलम्ब न करें। आपकी आज्ञासे सेनापति हाथमें दण्ड लिये हुए शत्रुका शासन करनेको प्रस्थान करें, इसके लिये आप अभी बिगुल बजवा दे। सुघोषाके घोषको सुनकर जैसे देवतागण प्रस्तुत हो जाते हैं, वैसेही आपकी बिगुलकी आवाज़ सुनते ही आपके सब सैनिक वाहनों और परिवारोंके साथ एकत्र हो जायें .
और आप भो तेजकी वृद्धिके लिये उत्तरको ओर तक्षशिलापुरीके लिये सूर्यकी तरह प्रस्थान करें। आप स्वयं जाकर अपनी
आँखों भाईका स्नेह देख आये और सुवेगकी बातोंकी सच्चाईझूठाईकी परीक्षा कर ले।"
मन्त्रीकी यह बात राजाने स्वीकार कर ली और कहा,अच्छा, ऐसाही होगा।" क्योंकि विद्वान् मनुष्य दूसरोंकी कही हुई उचित बातोंको भी मान लेते हैं। इसके बाद शुभदिनको, यात्राके समय किये जानेवाले मङ्गलके कार्योंका अनुष्ठान कर, महाराज पर्वतकेसे उन्नत गजेन्द्र के ऊपर आरूढ़ हुए। मानों दूसरे राजाकी सेना हो, ऐसे रथों, घोड़ों और हाथियों पर सवार हज़ा. रों सेवक प्रयाण-समयके बाजे बजाने लगे। एक ताल पर संगीत करनेवालोंकी तरह प्रयाण-वाद्योंका नाद सुन, सारी सेना इकट्ठी हो गयी। राजाओं, मन्त्रियों, सामन्तों और सेनापतियोंसे घिरे हुए महाराज मानों अनेक मूर्तियोंवाले होकर नगरके बाहर आथे। एक हज़ार यक्षोंसे अधिष्ठित चक्ररत्न सेनापतिके समान