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आदिनाथ-चरित्र
प्रथम पर्व पर उन्हें दया आगई, इससे उनकी आँखों की पुतलियाँ उस पर झुक गई -इतना ही नहीं, आँसुओं से उनकी आँखें तक तर होगई। ऐसे दया-भाव पूर्ण प्रभु के नेत्रों का कल्याण हो।
खुलासा-भगवान् इतने दयालु थे कि, उन्हें अपने अनिष्ट-कारियां पर भी दया पाती थी। वे अपने कष्टों को भूल कर, सतानेवाले के कष्टा की ही फिक्र करते थे।
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अब आप स्वेच्छा-पूर्वक आहार के लिए भ्रमण कीजिये। मैं आपको उपसर्ग नहीं करूँगा। भगवान् ने जवाब दिया--"मैं तो अपनी इच्छा से ही भ्रमण करता हूँ, किसी के कहने या दबाव डालने से नहीं।" जिस समय देव वहाँ से चलने लगा, तब भावान् की आँखों में यह सोच कर आँसू
आगये कि, इस बेचारे ने जो अनिष्ट कर्म किये हैं, उनके कारण इसे दुःख होगा। प्रभु की इस दृष्टि को लक्ष्य में रख कर ही कलिकाल-सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य ने इस स्तुति-श्लोक की रचना की है।