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________________ आदिनाथ चरित्र ३८४ प्रथम पर्व अन्तःपुर और परिवारसे घिर कर हाथी पर बैठे और उस मण्डपमें गये । फिर अन्तःपुर और हज़ारों नाटकों के साथ उन्होंने उच्च रूपसे बनाये हुए अभिषेक-मण्डप में प्रवेश किया । वहाँ स्नान- पीठमें सिंहासन पर चढ़े, उस समय हाथी के पर्वतशिखर पर चढ़नेका सा दृश्य हुआ । मानों इन्द्रकी प्रीतिके लिये हो, इस तरह वे पूरब दिशाकी और मुह करके रत्नसिंहासन पर बैठे । थोड़ेही हों इस तरह बत्तीस हज़ार राजा लोग उत्तर ओरकी सीढ़ियोंसे स्नान पीठ पर चढ़े और चक्रवक्त के पास भद्रासनोंपर हाथ जोड़कर उसी तरह बैठे, जिस तरह देवता इन्दके सामने हाथ जोड़कर बैठते हैं । सेनापति, गृहपति, वर्द्धकि, पुरोहित और सेठ साहूकार प्रभृति दक्खनकी सीढ़ियोंसे स्नान- पीठ पर चढ़े। मानों चक्रवर्तीसे प्रार्थना करनेकी इच्छा रखते हों, इस तरह अपने योग्य आसनों पर हाथ जोड़कर बैठ गये । पीछे आदिदेवका अभिषेक करने के लिये इन्द्र आये हों उस तरह इस नरदेवका अभिषेक करनेके लिये उनके आभियोगिक देव निकट आये । जलपूर्ण होनेसे मेघ जैसे, मानों चकवा पक्षी हो इस तरह मुख भाग पर कमल वाले और भीतरसे जल गिरते समय बाजेकी सी आवाज़ करने वाले स्वाभाविक और वैक्रियक रत्न कलशोंसे वे सब महाराजका अभिषेक करने लगे । मानों अपने ही नेत्र हों ऐसे जल से भरे हुए. कलशोंसे बत्तीस हज़ार राजाओंने, शुभ मुहूर्त्त में उनका अभिषेक किया और अपने सिरपर कमल कोषकी तरह
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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