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आदिनाथ-चरित्र
प्रथम पर्व पत्थर नहीं टूटते ; उसी तरह पृथ्वी पर चक्रवर्ती राजा मंत्र, तन्त्र विष, अस्त्र और विद्याओं से परास्त और अधीन किया जा नहीं सकता; तथापि तुम्हारे आग्रह से हम कुछ उपद्रव करेंगे।" यह कहकर देवता अन्तर्धान होगये।
म्लेच्छों का किया हा उपद्रव । क्षणमात्र में मानों पृथ्वी पर से उछल कर समुद्र आकाशमें आगये हों,इस तरह काजल जैसी श्याम कन्ति वाले मेघ आकाश में अगये। वे बिजली रूपी तर्जनी अंगुली से चक्रवर्ती की सेना का तिरस्कार और उत्कट गर्जनासे बारम्बार आक्रोष कर उसका अपमान करते हुए से दीखते थे। सेना को चूर्ण करने के लिये, वाशिला जैसे महाराजा की छावनी पर तत्काल चढ़ आये और लोहेके अग्रभाग, बाण और डण्डों जैसीधाराओं से बरसने लगे। पृथ्वी चारों ओर से मेघ-जलसे भर उठी। उस जलमें रथ नावों की तरह तथा हाथी घोड़े मगर मच्छों से दीखने लगे। सूरज मानों कहीं भाग गया हो, पर्वत कहीं चले गये हों, इस तरह मेघों के अन्धकार से कालरात्रि या प्रलयका सा दृश्य होगया। उस समय पृथ्वी पर जल और अन्धकारके सिवा कुछ न दीखता था। इस कारण मानो एक समय युग्म धर्म वर्त्तते हों, ऐसा दोखने लगा। इस तरह अरिष्टकारक वृष्टि को देख कर चक्रवर्ती ने प्यारे सेवकके समान अपने हाथों से चर्म रत्न को स्पर्श किया। जिस तरह उत्तर दिशा की हवासे मेघ बढ़ता है, उस