SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 379
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -पर्व आदिनाथ चरित्र ३५४ अनाथकी तरह अपनी सेना को पराजित हुई देखकर, राजा की आज्ञा की तरह, क्रोध में सेनापति सुषेण को जोश आगया । उसके नेत्र और मुँह लाल होगये और क्षणभर में मनुष्य रूप मैं जैसे अग्निहो, इस तरह वह दुर्निरीक्ष्य हो गया ; अर्थात् क्रोध के मारे वह ऐसा लाल हो गया, कि उसकी तरफ कोई देख न सकता था । राक्षस पति की तरह समस्त पराई सेना के ग्रास करने के लिये स्वयं तैयार हो गया। अंग में उत्साह - जोशआ जाने से, उसका सोनेका कवच शरीरमें सटकर दूसरी चमड़ी के समान शोभा देने लगा । कवच पहनकर, साक्षात् जयरूप हो, इस तरह, वह सुषेण सेनापति कमलापीड़ नामक घोड़े पर सवार हुआ। वह घोड़ा अस्सी अंगुल ऊँचा और नवाणु अँगुल विशाल था तथा एक सौ आठ अंगुल लम्बा था । उसका मस्तक भाग सदा बत्तीस अंगुल की उंचाई पर रहता था। चार अंगुल के उसके बाहु थे, सोलह अँगुलकी उसकी जाँघें थीं, चार अंगुल केघुटने थे, चार अंगुल ऊँचे खुर थे, गोलाकार और घूमा हुआ उसका बीचला भाग था; विशाल, किसी क़दर नर्म और प्रसन्न करनेवाले पिछले भाग से वह शोभायमान था, कपड़ेके तन्तु जैसे नर्म-नर्म रोम उसके शरीर पर थे । उस पर श्रेष्ठ बारह आवर्त्त या भरे थे। वह शुद्ध लक्षणों से युक्त था, जवान तोते के पंखों जैसी उसकी कान्ति थी। कभी भी उसने चाबुककी चोट न खाई थी, वह सवार के मनके माफ़िक चलनेवाला था, रत्नजड़ित सोने की लगाम के बहाने से मानो लक्ष्मी ने निज प्रथम
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy