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प्रथम पव
आदिनाथ-चरित्र
सब आपका ही है, अपने सेवक की तरह मुझे आज्ञा कीजिये।
इस तरह कहकर उसने वह वाण, मागध तीर्थ का जल, मुकट और दोनों कुण्डल अर्पण किये । भरतरायने उन सब चीज़ों को स्वीकार करके उसका सत्कार किया; क्योंकि महात्मा लोग सेबाके लिए नम्र हुए मनुष्यों पर कृपा ही करते हैं। अर्थात् बड़े लोगों की शरणमें जो कोई नम्र हो कर, उनकी सेवकाई के लिये, आता है, उस पर वे दया किया करते हैं। इसके बाद. इन्द्र जिस तरह अमरावती में जाता है, उसी तरह चक्रवर्ती रथ को वापस लौटाकर, उसी राह से छावनी में आये। रश से उतर, स्नानकर, परिवार समेत उन्होंने अठ्ठम का पारणा किया। पीछे, आथे हुए मागधाधीशका भी चक्रकी तरह, चक्रवर्तीने वहाँ बड़ी ऋद्धिके साथ अष्टान्हिक, उत्सव किया। मानो सूर्यके रथ में से ही निकल कर आया हो, इस तरह तेज से भी तीक्ष्ण चक्र अष्टाह्निका उत्सव के पीछे आकाश में चला और दक्खन दिशा में वर दान तीर्थ की ओर रुख किया। प्रादि उपसर्ग जिस तरह धातु के पीछे जाते है। उसी तरह चक्रवर्ती भी उसके पीछे पीछे चलने लगे। भरत चक्रि का वरदाम तीर्थ की ओर प्रयाण।
___ वरदाम पति का कोप और अधिन होना । .. सदा योजन मात्रप्रयाण से चलते हुए--नित्य चार कोस