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आदिनाथ-चरित्र ३२२
प्रथम पर्व अश्वपाल या घोड़ों की खबरगिरी करने वाले सईस, बन्धुओं की तरह, मोठमूंग, और चने वगेर; लेकर बड़ी तेजी से घोड़ोंके सामने रखतेथे।महाराजकी छावनी में विनिता नगरी की तरह क्षण भर में ही, चौक, तिराहे और दुकानों की पंक्तियाँ लग गई । गुप्त, बड़े बड़े और स्थूल तम्बुओं में सुखसे रहने वाले सेनाके लोग अपने पहलेके महलों की भी याद न करते थे। खेजड़ी, देर.और बबूलके काटे दार वृक्षों को खाने वाले ऊँट सेनाके कण्टक शोधन का कमा करते से जान पड़ते थे। स्वामी के सामने सेवकों की तरह, खच्चर, जाह्नवी के रेतीले किनारे पर, अपनी चाल चलायमान करते हुए लोटते थे। कोई लकड़ी लाता था, कोई नदी का जल लाता था, कोई दूब की भारी लाता था, कोई साग सब्जी और फल प्रभृति लाता था, कोई चूल्हा खोदता था, कोई शाल खाँडताथा,कोई आग जलाता था, कोई भात रांधता था, कोई घरकी तरह एकान्त में निर्मल जल से स्नान करता था, कोई स्नान करके सुगन्धित धूपसे शरीर को धूपित करता था । कोई पहले पैदल प्यादों को खिलाकर, पीछे स्वयं इच्छा मत भोजन करता था । कोई स्त्रियों सहित अपने अङ्ग चन्दनादिका विलेपन करता था। उस चक्रवर्ती राजाकी छावनी में सारे जरूरी सामान लीलासे अनायासही मिल सकते थे, अतः कोई भी आदमी अपने तई कटक में आया हुआ न समझता था; अर्थात् वहाँ जरूरियातकी समी चीजें बड़ी ही आसानी से मिल जाती थीं। अतः घरकी तरह ही आराम था, इससे कोई यह न समझता था कि, हम घर छोड़ कर सेनाके साथ आये हैं।