________________
आदिनाथ चरित्र
३१८
प्रथम पर्व
शोभित होने लगा। जिस तरह लक्ष्मी के घररूप कमलों को धारण करने वाले पद्म-सरोवर या कमलमय सरोवर से हिमालय पर्वत शोभायमान लगता है; उसी तरह सोनेके कलश धारण करने वाले सफेद छत्रसे वह शोभने लगा । मानो सदा पास रहने वाले प्रतिहारी - अर्दली हों, इस तरह सोलह हज़ार यक्ष भक्त होकर उसे घेर कर खड़े हो गये । पीछे इन्द्र जिस तरह
1
ऐरावत पर चढ़ता है; उसी तरह ऊँचे कुम्भ स्थल के शिखर से दिशामुख को ढकने वाले रत्नकुञ्जर पर वह सवार हुआ । तब उत्कट मद् की धाराओंसे मानों दूसरा मेघ हो, उस तरह उस जातिवान हाथीने बड़े ज़ोर से गर्जना की, मानो आकाश को पल्लवित करता हो, इस तरह हाथ ऊंचे करके बन्दगीण एक साथ “जय जय" शब्द करने लगे। जिस तरह वाचाल गवैया दूसरी गाने वालियों से गाना कराता है, उस तरह ऊँचा नाद करने वाला नगाड़ा दिशाओं से नाद कराने लगा, और सब सैनिकों को बुलाने में दूत जैसे अन्य श्रेष्ठ मंगल मय बाजे भी बजने लगे मानो धातु समेत हो, ऐसे सिन्दूर को धारण करने वाले हाथियोंसे, अनेक रुपको धारण करने वाले सूरज के घोड़ो का धोखा करने वाले अनेक घोड़ोंसे और अपने मनोरथ जैसे विशाल रथोंसे और मानो वशीभूत किये हुए सिंह हों - ऐसे पराक्रमी पैदलों से अलंकृत होकर महाराजा सेना के चलने से उड़ी हुई धूल से दिशाओं को बस्त्र पहनाते हुए - पूरब दिशा की तरफ चलदिये ।
1
भरतेश्वर मानो अपनी