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प्रथम पर्व
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आदिनाथ-चरित्र
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मामामामा कारमा जाहिमा मारना AN चतुर्थ सर्ग।
RE- ब इधर, अतिथि की तरह, चक्र के लिये उत्कण्ठित ४ अ हुए भरत राजा विनिता नगरीके मध्य मार्ग से होकर Ho आयुधागार में आये; अर्थात् राजा शहर के बीच में होकर अपने अस्त्रागार या सिलहखाने में आये। वहाँ पहुँच कर चक्रको देखते ही राजाने उसे प्रणाम किया ; क्योंकि क्षत्रिय लोग अस्त्रको प्रत्यक्ष अधिदेव मानते हैं। भरत ने मोरछत्र लेकर चक्रको पोंछा, यद्यपि ऐसे सुन्दर और अनुपम चक्ररत्नके ऊपर धूल नहीं जमती, तथापिभक्तोंका कर्त्तव्य है, फर्ज है, कि अपनी ड्यू टी पूरी करें। इसके बाद पूर्व-समुद्र जिस तरह उदय होते हुए सूर्यको स्नान कराता है; उसी तरह महाराज ने पवित्र जलसे चक्रको स्नान कराया। मुख्य गजपति-गजराजके पिछले भागकी तरह,उसके ऊपरगोशीर्ष चन्दन का “पूज्य" सूचक तिलक किया। इसके पीछे साक्षात् जय लक्ष्मी की तरह पुष्प, गन्ध, पासचूर्ण, वस्त्र और आभूषणों से उसकी पूजाकी, उसके आगे रूपे के चावलों से अष्ट मंगल रचा या मॉडा । और उन आठ जुदे-जुदे मंगलों से आठ दिशाओं की लक्ष्मी घेरली। उसके पास पचरंगे फूलोंका उपहार रखकर पृथ्वी विचित्र रंग की बनादी। और शत्रुओं के यशकी तरह प्रयत्न करके चन्दन