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आदिनाथ-चरित्र
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प्रथम पर्व प्राणियों के लिये देदीप्यमान और प्रज्वलित अग्नि के समान है। इसलिये विद्वानोंको उसमें लेशमात्र भी प्रमाद करना उचित नहीं; क्योंकि रात में उल्लङ्घन करने योग्य मरुदेश - मारवाड़ में अज्ञानी के सिवा और कौन प्रमाद करें ? अनेक जीवयोनि रूप भँवरों से आकुल संसार- सागर में, उत्तम रत्न- समान मनुष्य जन्म प्राणियों को बड़ी कठिनाई से मिलता है । दोहद या खाद पूरने से जैसे वृक्ष फल- युक्त होता है; उसी तरह परलोक-साधन करने से प्राणियों को मनुष्य जन्म सार्थक होता है । इस जगत् में दुर्जनों की वाणी जिस तरह सुनने में पहले मधुर और मनोमुग्धकर और शेष में अतीव भयङ्कर विपत्तियों का कारण होती है; उसी तरह विषय-भोग भी पहले मधुर और परिणाम में भयङ्कर और जगत् को ठगने वाले हैं । विषय पहले बड़े मधुर और मनको मोहने वाले प्राणी विषयों में बड़ा सुख-आनन्द समझते हैं; उनके विषम विषमय फल भोगने पड़ते हैं । वे उनसे बुरी तरह ठगे जाते हैं। उनके धोखे में आकर वे अपने मनुष्य जन्म को वृथा नष्ट करते और शेष में उन्हें नाना प्रकार की योनियों में जन्म लेकर अनेक प्रकारके घोरातिघोर कष्ट उठाने पड़ते हैं । जिस तरह अधिक उँचाईका अन्त पतन होने या पड़ने में है; उसी तरह संसार के समस्त पदार्थों के संयोग का अन्त वियोग में है । दूसरे शब्दों में यों भी कह सकते हैं, अत्यधिक उचाईका परिणाम पतन है और संयोग का परिणाम वियोग है। जो वहुत ऊँचा चढ़ता है, वह नीचा गिरता है और जिसका संयोग होता हैं, उसका बि
मालूम होते हैं ;
पर अन्तमें उन्हें