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प्रथम पर्व
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आदिनाथ चरित्र
में आपको आपके पुत्रके केवल ज्ञान होनेके उत्सव की खबर सुन कर प्रतीति हो जायगी ।
भरत का भगवान की बन्दना को चलना । मरुदेवा की मोक्ष |
इधर दादी पोतेमें यह बातें होही रही थीं, कि इतनेमें प्रतिहारीने महाराज भरतसे निवेदन किया कि महाराज ! द्वार पर दो पुरुष आये हुए हैं। उनके नाम यमक और शमक हैं । राजाने अन्दर आने की आज्ञा दी । उनमें से यमकने महाराजको प्रणाम कर कहा“हे देव ! आज पुरिमताल नगर के शकटानन बगीचे में युगादिनाथ को 'केवल ज्ञान' हुआ है। ऐसी कल्याण-कारिणी बात सुनाते मुझे मालूम होता है, - " कि भाग्योदयसे आपकी वृद्धि हो रही है। शमकने कहा- "महाराज ! आपकी आयुधशाला या शस्त्रागार में अभी चक्र पैदा हुआ है ।" यह वात सुनकर भरत महाराज क्षण भर के लिये इस चिन्तामें डूब गए, कि उधर पिताजीको केवल ज्ञान हुआ है और इधर चक्र पैदा हुआ है, मुझे पहले किसकी अर्चना करनी चाहिए। कहाँ तो जगतको अभयदान देने वाले पिताजी और कहाँ प्राणियोंका नाश करने वाला चक्र ? इस तरह विचार कर, अपने आदमियोंको पहले स्वामीकी पूजा की तैयारीका हुक्म दिया और यमक तथा शमकको यथोचित इनाम देकर विदा किया। इसके बाद मरुदेवा माता से कहा - "हे देवी ! आप सदैव करुण स्वरसे कहा करती थीं कि मेरा भिक्षा