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आदिनाथ-चरित्र
प्रथम पर्व देवताओं के भी स्वामी हैं । और सबको छोड़कर, केवल उन्होंके चरणों में मस्तक झुकाओ, उन्हींकी वन्दना, आराधना और उपासना करो। वे देव देवेश तुम्हारी अभिलाषाओं को पूर्ण करेंगे।
पद्मप्रभप्रभोर्दैहभासः पुष्णन्तु वः शिवम् । अन्तरंगारिमथन कोपाटोपादिवारुणाः ॥८॥
शरीर के अन्दर रहनेवाले शत्रुओं को दूर भगाने के लिए, भगवान् पद्मप्रभ स्वामी ने इतना कोप किया कि, उनके शरीर की कान्ति लाल हो गई। भगवान् की वही कान्ति तुम्हारी सम्पत्ति की वृद्धि करे।
खुलासा-बाहर के शत्रुओं की अपेक्षा भीतर के शत्रुओं को अपने वश में करना, और उन्हें पराजित करके बाहर निकाल देना परमावश्यक है। बाहरी शत्रुओं से हमारी उतनी हानि नहीं है, जितनी कि काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि भीतरी शत्र ओं से है। ये शत्र प्राणी के इहलोक के मुख और मान-पद लाभ करने में पूर्ण रूप से बाधक हैं। इनके शरीर में रहने से प्राणी का हर तरह अनिष्ट साधन ही होता है। उसे सिद्धि किसी हालत में भी नहीं मिल सकती। इसी से सिद्धि चाहनेवाले को इन्हें शरीर से निकाल देना चाहिये। ग्रन्थकार कहता है, इन भीतरी शत्रु ओं के शरीर रूपी किले से बाहर निकाल देने के लिए भगवान ने इतना क्रोध किया, कि क्रोध के मारे उनके शरीर का रंग लाल होगया। भगवान् की वही लाल रंग की कान्ति तुम्हारी सम्पत्ति को बड़ाधे ! ...