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प्रथम पर्व
२५५ आदिनाथ चरित्र आरम्भ किया है। क्या अपनी जीविकाके लिये अपनको अपना राज्य फिर ग्रहण करना चाहिये? अपने राज्य तो भरत ने ग्रहण कर लिये है, इसलिये अब अपन को कहाँ जाना चाहिये ? क्या अपने जीवन के लिये अपने को भरत की शरण में जाना चाहिये ? परन्तु स्वामी को छोड़कर जाने में अपन को उसका ही भय है। हे आर्यो ! हे श्रेष्ठ पुरुषो! अपन लोग प्रभु के विचारों को जानने वाले और सदा उनके पास रहने वाले हो, कृपया बताइये कि हम किंकर्त्तव्यमूढ़ लोग क्या करें ?
उन्होंने कहा-“वयंभूरमण समुद्रका अन्त जो ला सकता है वही प्रभुके विचारों को जान सकता है । पहले तो प्रभु हमें जो आचा प्रदान करते थे, हम वही करते थे, लेकिन आजकल तोप्रभुने मौन धारण कर रखा है, इसलिये अब वह कुछ भी आज्ञा नही करते। इस लिये जिस तरह तुम कुछ नहीं जानते ; उसी तरह हम भी कुछ नहीं जानते । अपन सबकी समान गति है। इसलिये आप लोग कहें वैसा करें। इसके बाद वे सब गङ्गानदीके निकटके वागमें गये और वहाँ स्वच्छन्दता पूर्वक कन्दमूल फलादि खाने लगे तभी से वनवासी कन्द मूल फल फूल खानेवाले तपस्वी पृथ्वी पर फैले।
नमि और विनमिका आगमन । उन कच्छ महाकच्छके नमि और बिनमि नामके दो विनीत और सुशील पुत्र थे। वे प्रभुके दीक्षा लेनेसे पहले उसकी आशा