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आदिनाथ चरित्र २४४
प्रथम पर्व होती है। इसके बाद भरतने नम्रतापूर्वक स्वामीको सिर झुका कर प्रणाम किया और अपने उन्नत वंश की तरह पिताके सिंहासनको अलंकृत किया। जिस तरह देवताओंने प्रभुका राज्याभिषेक किया था, उसी तरह प्रभुके हुक्मसे सामन्त और सेनापति आदिने भरतका राज्याभिषेक किया। उस समय प्रभुके शासनकी तरह, भरतके सिर पर पूर्णमासीके चन्द्रमाके समान अखण्ड छत्र शोभने लगा। उनके दोनों तरफ ढोरे जाने वाले चैवर चमकने लगे। उनके देखनेसे ऐसा जान पड़ता था, मानो वे उत्तरार्द्ध और पूर्वार्द्ध दो भागोंसे भरतके यहाँ आने वाली लक्ष्मीके दूत हों। अपने अत्यन्त उज्वलके गुण हों, इस तरह कपड़ों और मोतियोंके जेवरोंसे भरत शोभने लगे। बड़ी भारी महिमाके पात्र, उस नवीन राजाको, नये चाँद की तरह, अपने कल्याणकी इच्छासे राज-मण्डलीने प्रणाम किया।
संवत्सरी दान । प्रभुने बाहुबलि प्रभृति अन्य पुत्रोंको भी उनकी योग्यतानुसार देश बाँट दिये। इसके बाद प्रभुने कल्पवृक्षकी तरह उनकी अपनी इच्छासे की हुई प्रार्थनाके अनुरूप, मनुष्योंको सांवत्सरिक दान देना आरम्भ किया ; अर्थात कल्प-वृक्ष जिस तरह माँगने वालेको उसकी प्रार्थनानुसार फल देता है ; उसी तरह प्रभुसे जिसने जो माँगा उन्होंने उसे वही दिया। इसके सिवा उन्होंने शहरके चौराहों और दरवाज़ोंपर ज़ोरसे डौंडी पिटवा दी.