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प्रथम पर्व
आदिनाथ-चरित्र
एकके बीस-बीस भेद होनेसे, वेलोगोंमें नदी के प्रवाह कीतरह सौ तरह से फैले ; यानी सौ शिल्प प्रकट हुए। लोगोंकी जीविक के लिये घास काटना, लकड़ी काटना, खेती और व्यापार प्रभृति कर्म प्रभुने उत्पन्न किये और जगतकी व्यवस्था रूपी नगरी मानो चतुष्यथ या चार राहें हों, इस तरह साम, दाम, दण्ड औ: भेद इन चार उपायों की कल्पना की। सबसे बड़े पुनको ब्रह्मोपदेश करना चाहिये, इसे न्याय से ही मानो भगवान्ने अपने बड़े पुत्र भरतको ७२ कलायें सिखाई। भरतने भी अपने अन्य भाइयों तथा पुत्रोंको वे कलायें अच्छी तरहसे सिखाई। क्योंकि पात्रको सिखायी हुई विद्या सौ शाखा वाली होती है, बाहुबलिको प्रभुने हाथी, घोड़े, औरस्त्री-पुरुषोंके अनेक प्रकार के भेदवाले लक्षण बताये। ब्राह्मीको दाहिने हाथसे १८ लिपियाँ सिखाई और सुन्दरीको बायें हाथले गणित सिखाई । वस्तुओंके मान, उन्मान, अवमान और प्रतिमान प्रभुने सिखाये और रत्न प्रभृतिं पिरोनेकी कला भी चलाई। उनकी आज्ञासे बादी और प्रतिवादी अथवा मुद्दई और मुद्दायलयः का व्यवहार राजा, अध्यक्ष और कुलगुरुकी साक्षीसे चलने लगा। हस्ती आदिकी पूजा, धनुर्वेद और और वैद्यककी उपासना, संग्राम, अर्थशास्त्र, बंध, घात, बध और गोस्टी आदि तबसे प्रवृत्त हुए। यह माँ है, यह बाप है, यह भाई है, यह बेटा है, यह स्त्री है, यह धन मेरा है-ऐसी ममता लोगोंमें तबसे ही आरम्भ हुई। उसी समयसे लोग मेरा तेरा अपना या पराया समझा लगे। विवाहमें लोगोंने प्रभुको गहने कपड़ोंसे सजा हुआ देखा,