SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 250
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम पर्व २२५ आदिनाथ-चरित्र राजा होता है ; अर्थात् जो नियम विरुद्ध काम करते हैं, उन्हें राजा नियमों पर चलाता है। जिसे राजा बनाते हैं, उसे ऊँचे आसन पर बिठाते हैं और फिर उसका अभिषेक करते हैं। उसके पास चतुरंगिणी सेना होती है और उसका शासन अखण्डित होता है।” प्रभुको ये बातें सुनकर युगलियोंने कहा-“स्वामिन् ! आपही हमारे राजा हैं। आपको हमारी उपेक्षा न करनी चाहिए, क्योंकि हम लोगों में आपके जैसा और दूसरा कोई नज़र नहीं आता।" यह बात सुनकर प्रभुने कहा--"तुम पुरुषोत्तम नाभिकुलकर के पास जाकर प्रार्थना करो। वही तुम्हें राजा देंगे।” युगलियोंने प्रभुकी आज्ञानुसार नाभिकुलकर के पास. जाकर सारा हाल निवेदन किया, तब कुलकरोंमें :अग्रगण्य नाभिकुलकर ने कहा"ऋषभ तुम्हारा राजा हो।" यह बात सुनते ही युगलिये खुश होते हुए प्रभुके सामने आकर कहने लगे-"नाभिकुलकरने आपको ही हमारा राजा नियत किया है।" यह कह कर युगलिये स्वामी का अभिषेक करने के लिये जल लाने चले। उस समय स्वर्गपति इन्द्रका आसन हिला। अवधि ज्ञानसे यह जानकर, कि यह स्वामीके अभिषेक का समय है, वह क्षणभरमें वहाँ इस तरह आ पहुँचा, जिस तरह एक घरसे दूसरेमें जाते हैं। इसके बाद सौधर्म कल्पके उस इन्द्रने सोनेकी वेदी रचकर, उसपर अति पाण्डुकबला शिला ( मेरु पर्वतके ऊपर की तीर्थङ्कर भगवान के जन्मामिषेककी शिला ) के समान एक सिंहासन बनाया और पूर्व दिशा के स्वामीने उसी समय स्वस्तिवाचक की तरह देवोंके लाये हुए .
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy