________________
प्रथम पर्व
आदिनाथ-चरित्र नज़रसे देखते हैं, वे किसी-किसी समय दिल खोलकर बात कह बैठते हैं। उनमें भी जो स्वामीके अभिप्राय-मालिक की मन्शा--को जानकर बात कहते हैं, वे सच्चे सेवक कहलाते हैं। हे नाथ ! मैं आपका अभिप्राय जाने बाद कहता हूँ, इसलिये आप मुझसे नाराज़ न हूजियेगा। मैं जानता हूँ, कि आप गर्भवाससे ही वीतराग हैं-आप को किसी भी सांसारिक पदार्थ से मोह नहीं है-किसी भी वस्तुमें आसक्ति नहीं है। दूसरे पुरुषार्थों की अपेक्षा न होनेसे चौथे पुरुषार्थ-मोक्ष-के लियेही आप सज हुए हैं ; तथापि हे भगवन् ! मोक्ष-मार्ग भी आपही से प्रकट होगालोक-व्यवहार की मर्यादा भी आपही बाँधेगे। अतः उस लोकव्यवहार के लिये, मैं आपका पाणिग्रहण-महोत्सव करना चाहता हूँ। आप प्रसन्न हों! हे स्वामिन् ! त्रैलोक्य-सुन्दरी, परम रूपवती और आपके योग्य सुनन्दा और सुमङ्गलाके साथ विवाह करने योग्य आप हैं।
भगवान् कर्मभोग को अटल समझ कर विवाह
करने की स्वीकृति देते हैं।
विवाह की तैयारियाँ ।
विवाह-मण्डप की अपूर्व शोभा। उस समय स्वामीने अवधिज्ञान से यह जानकर कि, ८३ लाख पूर्वतक भोगने को दूढ़ भोग-कर्महैं और वे अवश्यही भोगने पड़ेंगे,